Shodashi Secrets
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हरिप्रियानुजां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥७॥
नवयौवनशोभाढ्यां वन्दे त्रिपुरसुन्दरीम् ॥९॥
Shodashi is recognized for guiding devotees towards increased consciousness. Chanting her mantra promotes spiritual awakening, encouraging self-realization and alignment Together with the divine. This benefit deepens interior peace and knowledge, creating devotees far more attuned to their spiritual objectives.
Charitable functions which include donating food stuff and garments towards the needy can also be integral towards the worship of Goddess Lalita, reflecting the compassionate facet of the divine.
षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥६॥
She would be the in the shape of Tri electrical power of evolution, grooming and destruction. Total universe is switching under her electrical power and destroys in cataclysm and once again get rebirth (Shodashi Mahavidya). By accomplishment of her I acquired this position and as a result adoration of her is the best one.
For all those nearing the head of more info spiritual realization, the ultimate stage is called a point out of full unity with Shiva. Here, specific consciousness dissolves into your universal, transcending all dualities and distinctions, marking the fruits of the spiritual odyssey.
कामाकर्षिणी कादिभिः स्वर-दले गुप्ताभिधाभिः सदा ।
लक्ष्या या चक्रराजे नवपुरलसिते योगिनीवृन्दगुप्ते
देव्यास्त्वखण्डरूपायाः स्तवनं तव तद्यतः ॥१३॥
केयं कस्मात्क्व केनेति सरूपारूपभावनाम् ॥९॥
भर्त्री स्वानुप्रवेशाद्वियदनिलमुखैः पञ्चभूतैः स्वसृष्टैः ।
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।